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तीर्थ पुरोहितो के हक-हकूक व परंपराओं का अंग्रेजो सहित सभी शासकों ने किया सम्मान लेकिन सरकार कर रही अनदेखी:हरीश रावत

देहरादून।पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि हमारे चारों धामों में तीर्थ पुरोहित, हक-हकूक धारियों सहित कई प्रचलित परंपराएं हैं। उन मान्यताओं को अंग्रेजों सहित सभी शासकों ने सम्मान दिया। लगभग ढाई वर्ष पूर्व सरकार ने इन परंपराओं को अनदेखा कर देवस्थानम (तीर्थाटन) बोर्ड का गठन कर दिया। राज्य के सभी प्रबुद्ध लोगों ने इस निर्णय का विरोध किया। प्रारंभ में सत्तारूढ़ दल ने विरोध को अनदेखा किया, लेकिन विरोध का उबाल जब सड़कों में उतरा तो सत्तारूढ़ दल में घबराहट पैदा हुई। अन्ततोगत्वा सरकार को अपना हठधर्मिता पूर्ण निर्णय वापस लेना पड़ा। सरकार पर दबाव बनाने में कांग्रेस पार्टी व तत्कालीन कांग्रेस विधायक श्री मनोज रावत की सबल भागीदारी रही। पंडा पुरोहित, पूरे देश व दुनिया में हमारे तीर्थ स्थानों के घुमंतू राजदूत/ प्रचारक हैं। चारधाम यात्रा व्यवस्थाओं के प्रमुख संचालक हैं। पंडा समाज के पास हर क्षेत्र क्षेत्र व प्रदेश के लोगों का विवरण रहता है। कभी भी किसी गांव, इलाके, शहर का व्यक्ति चार धामों में आया है तो उसका विवरण पंडा जी की पोथी में मिलेगा ही मिलेगा। लाला की बही धोखा खा सकती है, पंडा जी का रजिस्टर धोखा नहीं देगा। हमारे इलाके के पंडा-पुरोहितों का गांव फाटा के पास खाट गांव है। यहां के तीर्थ पुरोहित अपने नाम के आगे कुर्मांचली उद्बोधन लगाना पसंद करते हैं। मैं केदार धाम आते वक्त पूर्व संध्या में इन लोगों से मिला था। आज भी हमारे पुरोहितगण अपने जजमान के स्वस्तिवाचनार्थ उपस्थित थे। मैंने उनसे परामर्श कर यह तय किया कि मैं कल सुबह अपने पूर्वजों को जल चढ़ाऊ व भगवान केदार के दर्शन करूंगा। सारे उपस्थित पुरोहितगणों ने मुझे सलाह दी कि मैं और मेरे साथी, माँ मंदाकिनी/सरस्वती के जल में आज त्रासदी में कालकल्वित लोगों का पिंडदान कर जलार्पण करें। मैंने सहर्ष उनके आदेश का पालन किया। मुंह-हाथ धोकर मैंने भारत सरकार व उत्तराखंड वासियों की ओर से सभी ज्ञात-अज्ञात मृत आत्माओं का स्मरण कर भगवान केदारनाथ से उनकी मुक्ति की कामना कर पिंडदान दिया, अन्नदान, जलदान व धनदान किया। दक्षिणा, इस प्रकार के क्रियाकर्म का अनिवार्य हिस्सा है। उनसे निवृत्त होने के बाद मैंने, भूमि को छूकर भगवान केदार का स्मरण किया और कल दर्शन देने की प्रार्थना की। हम वहीं से अपने रात्रि प्रवास स्थल पर लौट आए, बड़ी संख्या में हमारे साथी जो लिंचोली में हमें छोड़कर तेजी से श्री केदार की ओर रवाना हुये थे। उन्होंने आते ही सबसे पहले मंदिर पहुंचकर भगवान केदार को माथा टेका और नंदी जी से कुछ मांगा होगा। उनका तिलक उनके उत्साह का अनुमान बता रहा था। त्रासदी के बाद प्रत्येक केदार आने वाले या श्रद्धालु के मन में केदार धाम की स्थिति व मंदिर को देखने की उत्सुकता स्वभाविक थी। हमारे साथियों ने हालात का लाभ उठाया और सीधे केदार शरणम् गच्छामि हो गए। हम लोगों ने कैंप में बाहर जहां आग जल रही थी, वहीं बैठ कर लोगों से अतीत की घटनाओं पर चर्चा की, चाय पीते रहे, लोगों के पास बताने को इतना था कि चाय के तीन दौर चलाने पड़े। प्रत्यक्षदर्शी तो भुक्तभोगी बनकर कालकल्वित हो गए, कुछ लोग जो बच पाए उनमें से यहां कोई उपस्थित नहीं था। लोगों से सुनी बातों व केदार, रामबाड़ा, गौरीकुंड आदि स्थानों की वस्तु स्थिति को देखकर लोग जो कुछ बता रहे थे वह उस समय की स्थिति का वस्तुतः वर्णन सा ही था। उपस्थित लोगों ने बताया कि राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन को प्रलय की सूचना तो समय पर मिल गई थी, मगर आवश्यक कदम उठाने में विलंब हुआ और शीर्ष स्तर पर हुआ। बातचीत से लगा कि घटना की भयावहता का अनुमान लगाने में राज्य नेतृत्व से अक्षम्य में विलंब हुआ। मंदिर कमेटी के अध्यक्ष पहले उच्च स्तरीय व्यक्ति थे जो घटना के तत्काल बाद केदार पहुंचे। मुझे जो कुछ लोगों ने बताया, मैं उस पर अभी और कुछ नहीं कहना चाहूंगा। यथार्थ यह है कि हम राजनेता दुघर्ष चुनौतीपूर्ण परीक्षा में फेल हो गए। हमसे इस दुघर्षपूर्ण स्थिति में जिस नेतृत्व क्षमता की अपेक्षा की जा रही थी, हम नहीं दिखा पाये। मंदिर के गर्भ गृह से शवों को निकालना व शव दाह, दोनों कठिन कार्य थे। राज्य सरकार के मंत्री, अधिकारी व मंदिर समिति के लोग पहुंचे। शव दहन की क्रिया पूरी करवाई गई। बहुत सारे लोगों ने इस कार्य में उच्च क्षमता दिखाई। कालांतर में राज्यमंत्री-मंडल ने ऐसे सभी स्थानीय, प्रशासकीय, राजनीतिक लोगों, पुरोहितगणों, पुलिस कर्मचारियों को धन्यवाद दिया। चर्चा इतनी बोझल हो गई थी कि मैंने उपस्थित लोगों से आराम करने को कहा। जैसे-तैसे कुछ खाया। सोने की चलती-फिरती व्यवस्था थी। कमरे में ऑक्सीजन के सिलेंडर भी रखे थे। मैंने अपने कुछ वरिष्ठ साथियों के पास भी ऑक्सीजन के छोटे सिलेंडर पहुंचाए। मगर उनके उपयोग की आवश्यकता नहीं पड़ी।

मैं कठिन से कठिन परिस्थितियों में रात को लेटते ही सो जाता हूं। इस उम्र में भी एकाध बार पेशाब के दबाव में नींद भंग होती है। उस रात मैं बहुत देर तक सो नहीं पाया। बड़ी संख्या में लोग एक झटके में जल मग्न होकर कालकल्वित हो गए। हजारों लोगों ने अपने व अपने स्वजनों के प्राण बचाने के लिए संघर्ष भी किया होगा, कई लोग जो बच गए उनके आगोश से जल प्रलय ने उनके माँ-बाप, पत्नी या बच्चे को छीन लिया। चौराबाड़ी की झील से आये इस प्रलय के चपेट में जो आया वह शिव को प्यारा हो गया। एक प्रशासनिक अधिकारी इस घटनाक्रम के चश्मदीद हैं। उन्हें शिव के नंदी ने बचा लिया। उन्होंने नंदी के चारों ओर अपनी बांहें डाल दी। बिहार के एक राजनीतिक व्यक्ति गर्भगृह में आधे डूबे व बच गए। मैं उनको लेकर सोचने लगा, न जाने कितनी बार धैर्य ने उनका साथ छोड़ा होगा। मौत को निश्चित मानकर भी बच गए। यह भगवान शिव का ही चमत्कार है कि मंदिर के ठीक ऊपर एक विशाल शिला ने महाप्रलय में भी मंदिर के ढांचे पर आंच नहीं आने दी। आज केदारधाम आने वाला प्रत्येक श्रद्धालु उस उस पत्थर रूपी भैरव को प्रणाम करता है। भगवान भोले शंकर के इन चमत्कारों के इर्द-गिर्द अपनी सोच को समेटकर मैं अन्ततोगत्वा सो ही गया। मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूं कि रात सोते हुए भी मेरे अचेतन मन में उन लोगों की सोच अवश्य उभरी होगी जो जल प्रलय से बच गए। मगर जंगलों के मार्ग में भटक गए और भूख-प्यास से मर गए। मैं आज भी अपने अचेतन मन को यह नहीं समझा पा रहा हूं कि हमने उनको बचाने का भगीरथ प्रयास किया। आज भी जंगलों में जब कंकाल मिलने की खबर आती है तो मेरे मन में उस रात अचेतन मन में उठे सवाल जीवांत होकर प्रश्न पूछने लगते हैं! मैं उत्तर देने की स्थिति में अपने को नहीं पाता हूं।

प्रातः उठकर चारों तरफ हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं को देखकर थोड़ी स्फूर्ति पैदा हुई। नित्य क्रिया से निवृत्त होकर ईष्ट देवता का नियमित पूजन किया और अपने साथियों को आवाज लगाकर एकत्र होने को कहा। कुछ ही मिनट बाद हम सब लोग भगवान केदारनाथ जी के जय कारे के साथ मंदिर की ओर अग्रसर हुए। हमारे आदरणीय तीर्थपुरोहित लोग पूर्व निर्धारित व्यवस्था के अनुसार सरस्वती नदी में बने छोटे पुल पर एकत्रित थे। पंडित दर्शन लाल तिवारी जी, पंडित जयंती लाल तिवारी व पंडित संजय कुर्मांचली जी मेरी ओर से हमारे पुरखों को किए जाने वाले तर्पण की व्यवस्था की हुई थी। जल प्रलय में मंदाकिनी व सरस्वती का प्रवाह एक ही कर दिया था। 2014 में दोनों के उद्गम व प्रवाह क्षेत्रों को पृथक किया गया। अब दोनों नदियां अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में प्रवाहित हैं। कुछ समय पहले तक यहां पर लड़की के अस्थाई पुल से काम चलाया जा रहा था। इसी लकड़ी के पुल से गिरकर एक होनहार एसडीएम कालकल्वित हुये थे। अब यहां पर सरस्वती में स्टील के दो पुल बन गए हैं। तर्पण आदि की अनिवार्यताओं से निवृत्त होकर हमारा जत्था भगवान शिव के जयकारे के साथ मंदिर की ओर बढ़ा। मंदिर मार्ग के दोनों ओर समस्त केदापुरी जिसमें पुजारियों, हक-हकूक धारियों व मंदिर समिति की सम्पत्तियां थी, सभी पूर्णत: ध्वस्त थी। मकान, इमारत आदि सभी प्रकार की सुविधाएं जल प्रलय में नष्ट हो चुकी थी। थोड़ी-चढ़ाई चढ़कर हम मंदिर के प्राचीन ऐतिहासिक गेट पर पहुंचे। गेट व उसमें बंधी घंटी भगवान की कृपा से सुरक्षित थी। माननीय पुरोहितगणों ने यहां पर हमारा स्वागत किया। आदरणीय नम्बूदरी के प्रतिनिधि पुजारी बागीश लिंग भी वहीं पर थे। भगवान केदार के द्वार पर खड़े, न जाने कितनी घटनाएं व संबंधित बातें मेरे मानस पटल पर आ रही थी और जा रही थी। रात लोगों से सुनी बातें भी मन पर अपनी छाया डाल रही थी। चारों ओर प्रचंड तबाही के मध्य आस्था के परम स्वरूप भगवान केदार रूप में शिव भोले मंदिर में विराजमान थे। मैंने मंदिर को गौर से देखा कुछ पत्थर मामूली से खिसके हुए थे, जिन्हें बाद में पुरातत्व संरक्षण विभाग की देखरेख में पूर्ववत् व्यवस्थित किया गया‌। मंदिर की बांई ओर खड़ा विशाल पत्थर, मंदिर प्रहरी के रूप में हम सबकी उत्सुकतामय श्रद्धा का केंद्र बना हुआ था। केदार के चारों ओर के हिमाच्छादित चोटिया ऐसा आभास दे रही थी मानो शिव जयकारा सुनकर खिलखिला कर हंस रहे हों। भगवान भैरव का मंदिर दूर सुरक्षित था। मगर वहां जाने का मार्ग पूर्णतः ध्वस्त हो चुका था। मंदिर की पहाड़ी भी कई स्थानों से दरक रही थी। मैं मुख्यमंत्री के रूप समयाभाव में इस पहाड़ी व रामबाड़ा तक मां मंदाकिनी के प्रभाव क्षेत्र में हो रहे निरन्तर भू-कटाव का ट्रीटमेंट नहीं कर पाया। हमने जापान से महंगी मगर अत्यधिक उपयोगी टेक्नोलॉजी लाने का प्रयास किया और इस प्रयास को “जायका” करार का हिस्सा बनाने का प्रस्ताव जापान के सम्मुख रखा। बिना उच्च टेक्नोलॉजी का उपयोग किए राज्य सरकार के लिए केदार पुरी से तल्ली लिंचोली तक हो रहे भूस्खलन को रोकना असंभव है। मेरे बाद आने वाले वालों ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया। उनका समस्त प्रयास केदार क्षेत्र में हुए पुनर्निर्माण कार्यों का श्रेय हमारी सरकार से छीनने में रहा है। हमारे बाद आने वाले केदार धाम क्षेत्र में भगवान केदार की कृपा से हमारे कार्यकाल में हुये कार्यों व शुभारंभों की ‘शौ’ केसिंग तक सीमित रहे हैं। केदारनाथ में वर्ष 2014-15, 16-17 में अभूतपूर्व निर्माण कार्य हुए। ध्वस्तता में पुनर्निर्माण का अद्वितीय मॉडल है केदारधाम। मुझे आश्चर्य है कि मेरी पार्टी की राज्य इकाई ने इसे कभी उपलब्धि के रूप में प्रचारित व प्रसारित नहीं किया। प्रचारित-प्रसारित तो लोकतंत्र बचाने की उस अद्भुत विजय को भी नहीं किया, जिसमें राष्ट्रपति शासन पराजित होता है एक बर्खास्त मुख्यमंत्री अपनी सरकार के साथ बिना शपथ लिए पदारूढ़ होता है। हमारा स्वभाव ही ऐसा है। आज जब मैं सोचता हूं कि हम ऐसा कैसे संभव कर पाए तो मेरा मन व मस्तिष्क दोनों कहते हैं हरीश तुमने उस दिन पुजारियों के मंत्रोचार के मध्य उत्तराखंड के एक नागरिक के तौर पर भगवान शिव के केदार स्वरूप से कुछ मांगा था। भगवान केदार के सम्मुख उस दिन मुझे निरंतर आभास हो रहा था, जैसे भगवान केदार धीमे स्वर में कह रहे हैं चिंता न करो, यहीं से नया उत्तराखंड बनेगा, जिसके लिए कोई भी ऊंचाई लांघना असंभव नहीं होगा। शांत केदार में जहां सब कुछ ठहर गया था, मैं अपने कुछ साथियों के साथ आधा घंटे से अधिक ध्यान मग्न रहा‌। पुजारीगण शिवार्चन में आशीर्वाद के भी कंठ स्वर उडेल रहे थे। मेरी इस केदार यात्रा के लंबे समय बाद शिवभक्त राहुल गांधी पैदल चलकर केदारधाम आए थे और भगवान शिव के केदार स्वरूप को ध्यानस्त भाव से प्रणाम कर रहे थे। उस दिन भी केदार पुरी बर्फाच्छिदित थी। शिव प्रणाम के बाद जब मैं राहुल जी के साथ चाय पी रहा था, राहुल जी अत्यधिक गंभीर थे। चाय ठंडी हो रही थी, मगर श्री राहुल ध्यानस्थ अवस्था में थे। कुछ देर बाद उसी अवस्था में मुझसे बोले कि रावत जी मुझे शिव के सम्मुख ध्यानस्थ अवस्था में कुछ प्रकाशमय चमक का आभास हुआ। मैंने कुछ कहना चाहा। उन्होंने अचानक कहा कि चलिए बाहर बर्फबारी देखते हुए चाय पीते हैं। मुझे विश्वास हो गया कि श्री राहुल गांधी अपने व शिव भक्ति के आभास के बीच कुछ और नहीं कहना या सुनना चाहते हैं। शायद अभी-अभी जो कुछ उन्होंने कहा वह अनायासवस कह गए हैं। आज भी आपसे इस सत्य मगर रहस्य को बांटते हुए मैं सतर्क हूं, शायद उन्हें मेरा यह रहस्यो उद्घाटन पसंद नहीं आएगा।

मंदिर में भगवान केदार को नतमस्तक प्रणामोपरांत मैंने मंदिर के अंदर प्रलय के बाद आए परिवर्तनों को जांचना चाहा। गर्भ गृह से लेकर नंदी विगृह तक मुझे सब कुछ सामान्य लगा। ऐसा लगता ही नहीं था कि कभी इस स्थान पर मलबे के ढेर के साथ भक्तों के शव भी चिरनिंद्रा में समाए हुए थे। पुजारीगणों ने मुझे सब कुछ विस्तार में बताया। बाहर आकर मैं विशाल पत्थर शिला को प्रणाम करने गया। मैंने आदि गुरु शंकराचार्य जी की समाधि स्थल को भी देखा। लगभग 2 घंटा चारों तरफ स्थिति को देखने में लग गया‌। गरुड़ चट्टी व उसका मार्ग पूर्णतः ध्वस्त था। मैं, मंदाकिनी व सरस्वती के उद्गम स्थल तक जाना चाहता था। परंतु मार्ग की कठिनाई के कारण जा नहीं पाया। एक मलुवा निर्मित ऊंचे से टीले से मैंने अपने साथ खड़े पंडा समाज के लोगों से कई जानकारियां ली। उन्होंने मुझे चौराबाड़ी क्षेत्र के विषय में बताया। कैसे विशाल झील बनी और उसमें ग्लेशियर के शिलाखंड के टूटकर गिरने से पानी के वेग के कई गुना बढ़ने से मार्ग में जो कुछ आया उसको लपेटते हुई उस रात्रि प्रलय घटित हुई। यह बताते हुए पीले पड़ते जा रहे उनके चेहरों को देखकर स्पष्ट लगता था कि कितनी भयावह रही होगी वह रात, जिसने हजारों लोगों घोड़े-खच्चरों से गुंजायमान इस दिव्य स्थान को श्मशान में परिवर्तित कर दिया‌। सबसे यथासाध्य जानकारी लेकर मैं एक बार पुनः पुजारी वर्ग व पुलिस प्रशासन के लोगों से मिला और धन्यवाद दिया। पुजारी लोगों के चेहरे पर मेरे लिए कृतज्ञतापूर्ण चमक थी‌‌। शायद मन ही मन कह रहे होंगे कि केंद्रीय मंत्री स्तर का कोई तो आया जिसने अपना समझ हमारे साथ इस आपदामय माहौल में रात बिताई। उन्हें यह भी आशा थी कि मेरे आगमन के समाचार के बाद छुट-पुट ही सही लोग केदार दर्शन के लिए आएंगे‌‌। मैंने उन्हें मार्ग तत्काल सुधारने का आश्वासन दिया। मैंने पंडा समाज के लोगों के चेहरे पर हमेशा अपने लिए आत्मीयता पूर्ण चमक देखी है। समय चक्र ने मुझे ही 2014 फरवरी की 1 तारीख को राज्य का मुख्यमंत्री का दायित्व सौंप दिया। मैं 100 बार से अधिक इस समाज के लोगों से मिला। तत्कालीन विधायका श्रीमती शैलारानी जी के साथ मिला। मुख्यमंत्री न रहने के बाद तत्कालीन विधायक श्री मनोज रावत जी के साथ मिला। इस समाज का मेरे प्रति हमेशा विश्वासपूर्ण उत्साहित भाव रहा है। 2017 में इस समाज के लोग मुझे श्री केदार क्षेत्र से चुनाव लड़ाना चाहते थे। मेरे मन ने कहा जो कुछ तुम्हारी सरकार ने इस दिव्य भूमि की सेवा की है उसका प्रतिकार तुम्हें नहीं लेना चाहिए। मैंने अति सुयोग्य व्यक्ति को अंतिम क्षणों में पार्टी का उम्मीदवार बनाया। जिन्हें लोगों ने विजयी बनाया। इस बार मनोज हार गए, उनकी हार से मुझे गहरी वेदना हुई। लगा मैं एक बार और हार गया हूं। श्री मनोज रावत व मेरे पुत्र आनंद रावत रचनात्मक आधारित राजनीति की अपनी मौलिक सोच रखते हैं। उत्तराखंड में कुछ ऐसे चुनिंदा नौजवान है जिनकी राज्य की राजनीति को आवश्यकता है।

हरीश रावत ने बताया कि मैंने अपने साथियों के बार-2 कहने पर राज्य प्रशासन का यह सुझाव मान लिया कि मैं हॉलिकॉप्टर से वापसी करूं। मैं अपराहन् में केदार का स्मरण कर लौटकर गुप्तकाशी आया, मेरे साथ श्री पृथ्वीपाल चौहान, श्री अभिषेक भंडारी, श्री संजीव रौथाण भी थे। मैंने पैदल आ रहे अपने साथियों की प्रतीक्षा करना उचित समझा। जब तक सभी लोग लौट कर नहीं आ गए मैं गुप्तकाशी में ही रहा और यहीं से मैंने अपनी केदार यात्रा की रिपोर्ट तैयार की जिसे राज्य व केंद्र सरकार को प्रस्तुत किया।