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श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवादित परिसर का होगा सर्वे, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका स्वीकार की..

मथुरा. उत्तरप्रदेश के मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवादित परिसर का सर्वे कराया जाएगा. इस आशय का फैसला आज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया है. हिंदू पक्ष की याचिका स्वीकार करते हुए कोर्ट ने सर्वे के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष वक्फ बोर्ड की उन दलीलों को खारिज कर दिया है. जिसमें उन्होंने इन याचिका को सुनने योग्य नहीं होने का दावा किया था.

हाईकोर्ट के जस्टिस मयंक कुमार जैन की एकल पीठ ने फैसला सुनाया है. 16 नवंबर को इस याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था. इस दिन विवादित परिसर की 18 याचिकाओं में से 17 पर सुनवाई हुई थी. ये सभी याचिकाएं मथुरा जिला अदालत से इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए शिफ्ट हुईं थीं. हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह के 13.37 एकड़ विवादित जमीन का कोर्ट कमिश्नर सर्वे करेंगे. यह सर्वे वाराणसी की ज्ञानवापी में मई 2021 में हुए कमिश्नर सर्वे की तरह होगा. इसमें कोर्ट कमिश्नर की टीम वहां जाकर साक्ष्य एकत्रित करके कोर्ट को रिपोर्ट देगी. हाईकोर्ट के फैसले के बाद हिंदू पक्ष के पक्ष वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा आज हमने मांग की थी कि मथुरा में 13.37 एकड़ विवादित भूमि योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की है. मस्जिद का गलत कब्जा है, उस कब्जे को हटाया कर 12 अक्टूबर 1968 के समझौते को अवैध घोषित किया जाए. हमने कोर्ट में मांग की थी कि कोर्ट कमिश्नर सर्वे बहुत जरूरी है. कोर्ट ने आज आदेश दे दिया है. कोर्ट कमिश्नर की टीम में कितने सदस्य होंगे, कौन-कौन होंगे, कब सर्वे करेंगे. कैसे फोटो-वीडियोग्राफी होगी, ये सब 18 दिसंबर को हाईकोर्ट में होने वाली अगली सुनवाई में तय होगा. श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद को लेकर मथुरा कोर्ट में 18 याचिकाओं में से 17 पर सुनवाई हुई थी. इनमें से ज्यादातर याचिकाओं में कोर्ट कमिश्नर सर्वे की मांग की गई थी. मई 2023 में श्रीकृष्ण विराजमान की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई थी. इस पर कोर्ट ने मथुरा कोर्ट में चल रहे सभी इस मामले से संबंधित मुकदमों को हाईकोर्ट में ट्रांसफर करवा लिया था. श्रीकृष्ण विराजमान की याचिका में हरिशकंर जैन, विष्णु जैन व रंजना अग्निहोत्री याचिककर्ता हैं. जस्टिस मयंक जैन ने बारी-बारी से मुकदमों की सुनवाई की. पक्षकारों की तरफ से अर्जियां और हलफनामे दाखिल किए गए. किसी ने पक्षकार बनाने तो किसी ने संशोधन की अर्जी दी. इसके बाद कोर्ट ने दूसरे पक्ष यानी मुस्लिम पक्ष को सिविल वाद व अर्जियों पर जवाब दाखिल करने का समय दिया था. एक पक्षकार ने मंदिर का पौराणिक पक्ष रखते हुए कहा था कि भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र ने मथुरा मंदिर का निर्माण कराया था. मंदिर के लिए जमीन दान में मिली. इसलिए जमीन के स्वामित्व का कोई विवाद नहीं है. मंदिर तोड़कर शाही मस्जिद बनाने का विवाद है. राजस्व अभिलेखों में जमीन अभी भी कटरा केशव देव के नाम दर्ज है.

1968 में हुआ था समझौता-

1946 में जुगल किशोर बिड़ला ने जमीन की देखरेख के लिए श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाया था. साल 1967 में जुगल किशोर की मृत्यु हो गई. कोर्ट के रिकॉर्ड के अनुसारए 1968 से पहले परिसर बहुत विकसित नहीं था. साथ ही 13.37 एकड़ भूमि पर कई लोग बसे हुए थे. 1968 में ट्रस्ट ने मुस्लिम पक्ष से एक समझौता कर लिया. इसके तहत शाही ईदगाह मस्जिद का पूरा मैनेजमेंट मुस्लिमों को सौंप दिया. 1968 में हुए समझौते के बाद परिसर में रह रहे मुस्लिमों को इसे खाली करने को कहा गया. साथ ही मस्जिद व मंदिर को एक साथ संचालित करने के लिए बीच दीवार बना दी गई. समझौते में यह भी तय हुआ कि मस्जिद में मंदिर की ओर कोई खिड़की, दरवाजा या खुला नाला नहीं होगा. यानी यहां उपासना के दो स्थल एक दीवार से अलग होते हैं. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि 1968 का यह समझौता धोखाधड़ी से किया गया था और कानूनी रूप से वैध नहीं है. उन्होंने कहा कि किसी भी मामले में देवता के अधिकारों को समझौते से खत्म नहीं किया जा सकता हैए क्योंकि देवता कार्यवाही का हिस्सा नहीं थे.