चंडीगढ़ | पूर्व सैनिकों के आश्रितों द्वारा पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. इस याचिका को लेकर कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है. हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग द्वारा ग्रुप सी और ग्रुप डी के पदों की भर्ती प्रक्रिया में बनाई गई वरीयता सूची को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि चयन प्रक्रिया के दौरान किसी ऐसे वरीयता नियम को लागू नहीं किया जा सकता, जो भर्ती विज्ञापन में स्पष्ट रूप से उल्लिखित ना हो.
HSSC की वरियता सूची रद्द
हाई कोर्ट का कहना है कि हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (HSSC) की भर्ती प्रक्रिया में बनाई गई वरीयता सूची को रद कर दिया है. हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग ने ग्रुप सी और डी पदों के लिए एक नोटिफिकेशन जारी की थी, जिसमें आवेदन के लिए कामन एलिजिबिलिटी टेस्ट (संयुक्त पात्रता परीक्षा) पास करना अनिवार्य था, पर मुख्य परीक्षा के दौरान आयोग ने एक वरीयता सूची तैयार की, जिसमें कहा गया कि पूर्व सैनिक श्रेणी में दिव्यांग पूर्व सैनिकों को प्राथमिकता दी जाएगी. इस पर जस्टिस जगमोहन बंसल ने टिप्पणी दी और कहा कि चयन प्रक्रिया भर्ती एजेंसी की मर्जी पर निर्भर नहीं हो सकती.
भर्ती विज्ञापन में नहीं होनी निर्धारित नियमों की अनदेखी
यह कानून के शासन के विरुद्ध होगा और इसे अनुमति नहीं दी जा सकती. न्यायाधीश ने यह भी कहा कि हालांकि आयोग का दिव्यांग पूर्व सैनिकों को प्राथमिकता देने का उद्देश्य सही हो सकता है, मगर किसी भी स्थिति में भर्ती विज्ञापन और निर्धारित नियमों की अनदेखी नहीं होगी. कोर्ट ने यह साफ किया कि आयोग श्रेणीवार उम्मीदवारों को शार्टलिस्ट कर सकता है, लेकिन किसी भी श्रेणी के अंदर अतिरिक्त प्राथमिकता तभी दी जा सकती है जब वह विज्ञापन या कानूनी प्रविधानों में स्पष्ट रूप से उल्लिखित हो.
याचिकाकर्ताओं ने लगाया यह आरोप
यह याचिका उन पूर्व सैनिकों के आश्रितों की तरफ से दायर की गई थी, जो पूर्व सैनिक श्रेणी के तहत आरक्षण के पात्र थे. याचिकाकर्ताओं द्वारा आरोप लगाया गया था कि मुख्य परीक्षा के दौरान बनाई गई वरीयता सूची की वजह से दिव्यांग पूर्व सैनिकों और उनके परिवार के सदस्यों को उच्च प्राथमिकता दी गई, जिससे मेरिट में कम अंक हासिल करने के बाद भी उनका सिलेक्शन हो गया.
फाइनल लिस्ट में मिलनी चाहिए प्राथमिकता
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करते हुए कहा कि सरकारी निर्देशो के मुताबिक, दिव्यांग पूर्व सैनिकों और उनके परिवार को फाइनल सिलेक्शन लिस्ट में प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ना कि मुख्य परीक्षा के दौरान. कोर्ट द्वारा दोहराया गया कि कोई भी एजेंसी भर्ती विज्ञापन के नियमों से बाहर जाकर कार्य नहीं कर सकती.
अगर ऐसा करने की अनुमति दी जाती है तो इससे अनिश्चितता और अव्यवस्था बढ़ेगी. हाईकोर्ट ने आर्डर दिया कि दिव्यांग पूर्व सैनिकों और उनके परिवारजनों को वरीयता अंतिम चयन सूची में दी जाएगी, ना कि मेंस परीक्षा के दौरान.
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