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चंडीगढ़ | हरियाणा विधानसभा के शीतकालीन सत्र की 13 नवंबर से शुरूआत हो रही है, लेकिन कांग्रेस (Haryana Congress) ने अभी तक विधायक दल के नेता का चयन नहीं किया है. चुनावी नतीजे घोषित हुए डेढ़ महीने का समय बीत चुका है. ऐसे में सवाल खड़ा हो रहा है कि इतने दिनों बाद भी कांग्रेस पार्टी इस पद को लेकर किसी फैसले पर नहीं पहुंची है. बता दें कि विधायक दल का नेता ही विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाता है और फ्लोर पर विपक्षी विधायकों को एकजुट रखना और बड़े मुद्दों पर सरकार को घेरने में उसकी सबसे बड़ी भूमिका रहती है.
अप्रत्याशित हार से सदमे में कांग्रेस
हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिली अप्रत्याशित हार से कांग्रेस पार्टी अब तक उभर नहीं पाई है और यही सबसे बड़ी वजह है कि अभी तक विधायक दल का नेता नही चुना गया है. चुनाव में मिली हार को लेकर कांग्रेस पार्टी इलेक्शन कमीशन से भी लगातार शिकायतें कर रही है. पार्टी का मानना है कि कई बूथों पर वोटिंग और EVM की वजह से उसके उम्मीदवारों को हार झेलनी पड़ी है.
नेता प्रतिपक्ष को लेकर जद्दोजहद जारी
हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के 37 विधायकों को जीत मिली है और इनमें से 31 विधायक पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा गुट से है. हुड्डा गुट लगातार कोशिश में है कि उनके किसी करीबी को विधायक दल का नेता बनाया जाएं और इसके लिए कांग्रेस हाईकमान के सामने कई नामों को रखा गया है.
कद्दावर नेता कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला चाहते हैं कि हुड्डा गुट से अलग किसी नेता को विधायक दल का नेता चुना जाना चाहिए. चंडीगढ़ में आयोजित हुई विधायक दल की बैठक में इसको लेकर तनातनी भी देखी गई थी. हालांकि, अंतिम निर्णय हाईकमान पर छोड़ दिया गया था. इसके अलावा, कांग्रेस हाईकमान इस समय महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव में बिजी हैं. ऐसे में हो सकता है कि इन चुनावों के बाद ही हरियाणा में विधायक दल के नेता का चयन हो सकें.
ये भी है बड़ी वजह
2024 के विधानसभा चुनाव से पहले दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले उदयभान सिंह को प्रदेशाध्यक्ष की कमान सौंपी गई थी. वहीं, जाट समुदाय के नेता भुपेंद्र हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था. लोकसभा चुनाव में जाट और दलित वोट-बैंक की जुगलबंदी ने ने कांग्रेस को 5 सीटों पर जीत दिलाई थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को जाट समुदाय का तो एकतरफा वोट मिला था मगर दलित वोट- बैंक में सेंधमारी हुई है. इसका नतीजा यह हुआ कि जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रही कांग्रेस पार्टी को सत्ता के बेहद नजदीक आकर भी मायूसी झेलनी पड़ी.
दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले प्रदेशाध्यक्ष उदयभान सिंह को खुद अपनी सीट पर हार झेलनी पड़ी. ऐसे में उनकी कुर्सी पर भी खतरा मंडरा रहा है. कहा जा रहा है कि विधायक दल का नेता न चुने जाने की एक वजह प्रदेश अध्यक्ष पर फैसला होना भी है.
कन्फ्यूजन में कांग्रेस हाईकमान
इन वजहों के अलावा कांग्रेस हाईकमान भी नेता प्रतिपक्ष को चुनने को लेकर कन्फ्यूज है. अगर किसी गुट को बड़ी जिम्मेदारी मिलती है और उन पर कांग्रेस के उम्मीदवारों को हराने का आरोप लगता है तो इससे पार्टी की किरकिरी हो सकती है. इसलिए भी कांग्रेस इस मसले पर सारे एंगल जानने के बाद ही फैसला करना चाहती है.