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इलाहाबादा हाईकोर्ट का आदेश, बिना रीति-रिवाज के हिन्दू विवाह अमान्य है, आर्य समाज मंदिर, रजिस्ट्रार द्वारा प्रमाण पत्र का कोई महत्व नही

लखनऊ. उत्तरप्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने हिन्दू विवाह से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि हिंदू व्यक्ति के विवाह में हिंदू रीतियां अपनाया जाना आवश्यक है. यदि ऐसा नहीं हुआ है तो रजिस्ट्रार द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र अथवा आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी प्रमाण पत्र का कोई महत्व नहीं रह जाता. यह कहते हुए जस्टिस राजन राय व जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने 39 साल के एक कथित धर्मगुरु द्वारा धोखाधड़ी कर 18 वर्षीय लड़की से किए गए कथित विवाह को शून्य घोषित कर दिया है. यह निर्णय जस्टिस राजन राय व जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने युवती की ओर से दाखिल प्रथम अपील को मंजूर करते हुए पारित किया है.

युवती ने अपील में पारिवारिक न्यायालय लखनऊ के 29 अगस्त 2023 के निर्णय को चुनौती दी थी. युवती ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 के तहत परिवार न्यायालय के सामने वाद दाखिल करते हुए 5 जुलाई 2009 को हुए कथित विवाह को शून्य घोषित किए जाने की मांग की थी. वहीं प्रतिवादी कथित धर्मगुरु ने भी धारा 9 के तहत वाद दाखिल कर वैवाहिक अधिकारों के पुर्न स्थापना की मांग उठाई थी. पारिवारिक न्यायालय ने दोनों वादों पर एक साथ सुनवाई करते हुए युवती के वाद को निरस्त कर दिया था जबकि प्रतिवादी धर्मगुरु के वाद को मंजूर कर लिया. पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में युवती की ओर से दलील दी गई कि प्रतिवादी धर्मगुरु है. युवती की मां व मौसी उसकी अनुयायी थीं. पांच जुलाई 2009 को उसने अपीलार्थी व उसकी मां को अपने यहां बुलाया व कुछ दस्तावेजों पर यह कहते हुए दोनों के हस्ताक्षर करवाए कि वह उन्हें अपने धार्मिक संस्थान का नियमित सदस्य बनाना चाहता है. इसके पश्चात तीन अगस्त 2009 को भी उसने सेल डीड में गवाह बनने के नाम पर रजिस्ट्रार ऑफिस बुलाकर दोनों के हस्ताक्षर करवा लिए. कुछ दिनों बाद उसने अपीलार्थी के पिता को सूचना दी कि पांच जुलाई 2009 को उसका आर्य समाज मंदिर में अपीलार्थी से विवाह हो गया है व तीन अगस्त 2009 को पंजीकरण भी हो चुका है. हाईकोर्ट की बेंच के विद्वान न्यायाधीशों ने कहा कि सभी दस्तावेज धोखाधड़ी कर के बनवाए गए. अपील का प्रतिवादी धर्मगुरु की ओर से विरोध किया गया. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के पश्चात हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि विवाह को सिद्ध करने का भार प्रतिवादी धर्मगुरु पर था परंतु वह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-7 के तहत हिंदू रीति से विवाह होना सिद्ध नहीं कर सका जिस कारण विवाह संपन्न होना नहीं माना जा सकता. यह कहकर हाईकोर्ट ने कथित विवाह को शून्य घोषित कर दिया.