कलंकित करती आज की पत्रकारिता

रुड़की (देशराज पाल)। पत्रकारिता एक ऐसा पेशा है जो गरीब मजलूम और जिनकी पुलिस कोई सुनवाई नहीं करती उनको पत्रकार की कलम से इंसाफ आज तक मिलता आया है। इतना ही नहीं पत्रकार खुद भूखा प्यासा रहकर दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहा है और इसी के चलते पत्रकार चौथा स्तंभ कहलाता है। लेकिन आज पत्रकारिता का पैसा इतना नीचे गिर गया है कि जिसकी कोई कल्पना तक नहीं की जा सकती।
पत्रकारिता अपने आप में एक इतिहास है। पत्रकार के कारण ही आज आमजन भी राहत की सांस ले रहा है। पुलिस से इंसाफ ना मिले तो पीड़ित अपनी पीड़ा बताने के लिए दूसरा रास्ता पत्रकार के पास जाने का ही सोचता है और उसे आशा ही नहीं विश्वास होता है कि उसे अब इंसाफ मिलेगा जबकि इंसाफ पुलिस प्रशासन या न्यायालय ही देता है लेकिन इसके बावजूद भी वह पत्रकार पर ही विश्वास कर अपनी पीड़ा उनके सम्मुख लगता है। लेकिन आज के दौर की पत्रकारिता ने अपने आप को इतने नीचे गिरा दिया है। इस गिरते पत्रकारिता में सबसे बड़ा रोल सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक चैनल, यूट्यूब आदि के बने नोसीखिए पत्रकार इस काम को धड़ल्ले से अंजाम दे रहे हैं। इनमें कुछ तो शैक्षिक योग्यता रखने वाले हैं और अधिक पांचवी, आठवीं मात्र पढ़े लिखे हैं। ऐसा नहीं है कि यह पांचवी, आठवीं वाले हैं इस काम को अकेले अंजाम दे रहे हैं बल्कि इनके साथ मिलकर शैक्षिक योग्यता वाले भी इसमें शामिल है। पत्रकारिता के लगातार गिरते स्तर पर बड़े-बड़े अखबारों के मालिक व संपादकों का ध्यान पता नहीं क्यों नहीं जा पा रहा। सोशल मीडिया से जुड़े पत्रकार पर भी न तो सरकार और ना ही प्रशासन का ध्यान इस और है। जिसके चलते ही यह बेखौफ होकर कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। इस और यदि शीघ्र ही कोई कदम नहीं उठाया गया तो हालात इससे भी ज्यादा बदतर हो सकते हैं।