किसी ने सच कहा है कि महिलाओं के पेट में कोई भी गुप्त बात नहीं पचती। इस बात पर आपने कई सारे चुटकुले भी सुने होंगे। पेट में बात ना पचने के यूं तो बहुत से कारण होते है लेकिन सबसे जरूरी कारण उनका स्वभाव होता है। महिलाएं अपने स्वभाव से बातूनी होती है। इसीलिए तो उनके पेट में कोई बात नहीं पचती। खैर जो भी हो लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि इस बात के पीछे भी एक रोचक कहानी है जो आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बताएंगे। यह कहानी महाभारत से जुड़ी हुई है जो इस बात के पीछे के रहस्य को उजागर करती है। तो चलिए जानते है क्या है वो कहानी।
कर्ण का जन्म
बात उस समय की है जब कुंती जो पांडवों की माता कहलाती हैं सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या कर रही थीं। उनकी उपासना से ख़ुश होकर सूर्यदेव ने उनसे वरदान मांगने को कहा तब कुंती ने उनसे एक पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगा। उस वक़्त वह इस बात से अंजान थी कि एक कुँवारी माँ के लिए समाज में जीना कितना मुश्किल होता है। उसे तरह तरह की परेशानियों से गुज़रना पड़ता है साथ ही हर कदम पर उसका तिरस्कार होता है। चूँकि उसने सूर्यदेव से यही वरदान मांगा था इसलिये उन्होंने उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया।
लेकिन जब कुंती को इस बात का एहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी भूल की है तो उसने अपने पुत्र कर्ण के जन्म को गुप्त रखने का निर्णय लिया और उसे एक टोकरी में डाल कर एक नदी में बहा दिया। कहा जाता है कि उस बच्चे को धृतराष्ट्र के ही एक सारथी ने बचाया था। बाद में उसने उस बच्चे की परवरिश अपने पुत्र की तरह की और उसे वासुसेन नाम दिया। अपनी पालनकर्ता माता के नाम पर कर्ण को राधेय के नाम से भी जाना जाता है। कर्ण ने सदैव उन्हीं को अपना माता-पिता माना और अपनी मृत्यु तक सभी पुत्र धर्मों को निभाया।
कर्ण की शिक्षा
एक कथा के अनुसार जब कर्ण गुरु द्रोणाचार्य के पास शिक्षा के लिए गए तो उन्होंने उसे अपना शिष्य बनाने से साफ़ इंकार कर दिया क्योंकि वह एक क्षत्रिय नहीं था। द्रोणाचार्य उस वक़्त युद्धकला के सर्वश्रेष्ठ आचार्यों में से एक थे और कुरु राजकुमारों को शिक्षा दिया करते थे। इसके बाद कर्ण ने परशुराम से संपर्क किया जो कि केवल ब्राह्मणों को ही शिक्षा दिया करते थे। कर्ण ने स्वयं को ब्राह्मण बताकर परशुराम से शिक्षा का आग्रह किया। परशुराम ने कर्ण का आग्रह स्वीकार किया और उसे युद्धकला और धनुर्विद्या का धुरन्धर बना दिया।
किन्तु एक दिन जब परशुराम कर्ण की जंघा पर सिर रख कर सो रहे थे तब अचानक एक बिच्छू ने उसकी जंघा पर डंक मार दिया। गुरु की निद्रा भंग न हो इसलिए कर्ण चुपचाप सारा दर्द सहते रहे। थोड़ी देर बाद जब परशुराम की नींद टूटी तो उन्होंने देखा की कर्ण के जंघा से बहुत रक्त बह रहा था वे फ़ौरन समझ गए कि इतना साहस केवल एक क्षत्रिय में ही हो सकता है और कर्ण एक क्षत्रिय है ब्राह्मण नहीं। इतने बड़े धोखे से परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि जब भी उसे उनकी दी हुई शिक्षा की सबसे ज़्यादा ज़रुरत होगी उस दिन यह शिक्षा उसके किसी काम नहीं आएगी। यही वजह थी कि कर्ण को महाभारत के युद्ध में अर्जुन से पराजित होना पड़ा था। कुछ लोककथाओं में माना जाता है कि बिच्छू के रूप में स्वयं इन्द्र थे, जो उसकी वास्तविक क्षत्रिय पहचान को उजागर करना चाहते थे।
जब कुंती ने सत्य का किया खुलासा
कर्ण को बचाने वाला धृतराष्ट्र का ही एक सारथी था इसलिये कर्ण कौरवों के बीच ही पल कर बड़ा हुआ था और दुर्योधन उसका सबसे अच्छा मित्र था। यही वजह थी कि उसने महाभारत में कौरवों की ओर से युद्ध किया था। कहते हैं युद्ध के दौरान अर्जुन के प्रहार के बाद जब कर्ण अपनी अंतिम सांसें ले रहा था उस समय कुंती खुद को रोक नहीं पायी और अपने पुत्र के लिए चीख चीख कर रोने लगी। इसके बाद वहां उपस्थित सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए कि आखिर कुंती कर्ण के लिए क्यों दुखी हो रही है। तब उसने इस बात का खुलासा किया कि कर्ण और कोई नहीं बल्कि उसका अपना पुत्र है और इस पुत्र का जन्म उनके और पांडु के विवाह के पूर्व ही हो गया था।
यह सत्य जानकर कुंती के ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठिर अत्यन्त क्रोधित हो उठे कि कुंती ने इतनी बड़ी बात को गुप्त रखा। बाद में जब राज तिलक का समय आया तब युधिष्ठिर ने दोबारा इस बात पर क्रोध जताया और सारी चीज़ों का ज़िम्मेदार अपनी माता को बताते हुए पूरी स्त्री जाति को यह श्राप दिया कि उनके पेट में कोई भी गुप्त बात कभी नहीं पचेगी। तब से यह माना जाता है कि कोई भी स्त्री 48 घंटों से ज़्यादा किसी भी गुप्त बात को नहीं छिपा सकती।