नई दिल्ली। होली में जितना महत्व रंगों का है। उतना ही महत्व होलिका दहन का है। इस दिन को इच्छित कामनाओं की पूर्ति करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। आज पूरे देश में होलिका दहन किया जाएगा। जिसका समय आज सुबह 7:53 मिनट से शुरू हो जाएगा और जाे शुक्रवार की सुबह 6:27 मिनट तक रहेगा। ये लगभग 22 घंटों तक रहेगा। होलिका दहन के साथ ही शहर की गलियों में रंग शुरू हो जाएगा, जो शुक्रवार को दोपहर तक जारी रहेगा।
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होलिका दहन के नियम
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक होता है। इस दौरान शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यत: दो नियम ध्यान में रखने चाहिए। पहला ये कि उस दिन भद्रा न हो। इस बार 1 मार्च को शाम 7.39 तक भद्रा रहेगी। और दूसरा ये कि पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए यानी उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक होता है। इस दौरान शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यत: दो नियम ध्यान में रखने चाहिए। पहला ये कि उस दिन भद्रा न हो। इस बार 1 मार्च को शाम 7.39 तक भद्रा रहेगी। और दूसरा ये कि पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए यानी उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।

पूजा करने की विधि
होलिका दहन से पहले पूजन के लिए पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिए। पूजन के लिए माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, पांच प्रकार के अनाज में गेहूं की बालियां और साथ में एक लोटा जल रखना चाहिए। होलिका के चारों ओर सात परिक्रमा कर कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर सात परिक्रमा करते हुए लपेटना चाहिए। होलिका जलाने से पहले विधिवत पूजन करने के बाद जल से अर्घ्य देना चाहिए। अग्नि प्रज्ज्वलित करने के बाद उसे नमन कर रोली तिलक लगाना चाहिए। मान्यता के अनुरूप होली की अग्नि को घर में लाना शुभ होता है। कई जगह होली की राख शरीर पर भी लगाते हैं।

क्यों होता है होलिका दहन
पौराणिक कथा के अनुसार, शक्तिशाली राजा हिरण्यकश्यप था, वह खुद को भगवान मनाता था और चाहता था कि हर कोई भगवान की तरह उसकी पूजा करें. वहीं अपने पिता के आदेश का पालन न करते हुए हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद ने उसकी पूजा करने से इंकार कर दिया और उसकी जगह भगवान विष्णु की पूजा करनी शुरू कर दी। इस बात से नाराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को कई सजाएं दी जिनसे वह प्रभावित नहीं हुआ।
इसके बाद हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका ने मिलकर एक योजना बनाई की वह प्रहलाद के साथ चिता पर बैठेगी। होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था जिसे ओढ़ने के बाद उसे आग में किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता, दूसरी तरह प्रहलाद के पास खुद को बचाने के लिए कुछ भी न था।
जैसे ही आग जली, वैसे ही वह कपड़ा होलिका के पास से उड़कर प्रहलाद के ऊपर चला गया। इसी तरह प्रहलाद की जान बच गई और उसकी जगह होलिका उस आग में जल गई। यही कारण है होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
जैसे ही आग जली, वैसे ही वह कपड़ा होलिका के पास से उड़कर प्रहलाद के ऊपर चला गया। इसी तरह प्रहलाद की जान बच गई और उसकी जगह होलिका उस आग में जल गई। यही कारण है होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।